Tuesday, March 04, 2014

दिल का मलाल

कुछ गुंडों और दलालों का भला  करने से अगर डेमोक्रेसी चलती हो तो पूरे जनता का भला करने कि क्या ज़रुरत है? बोल के शांत होने वाले तो पिछले ६५ सालों से हिंदुस्तान में जन्मते रहे हैं, metaphorically ना राज बदला है न राजा, हाँ नाराज़गी हमेशा रही है। जात, धर्म, भाषा, क्षेत्रीयता ऐसे बहुत से मसले हैं जिसमे रोज़ की अज़ियतों को दिल से निकाला जा सके। तो? आपस में लड़ते रहिये। अगर हमारे पूर्वज सैकड़ों सालों कि ग़ुलामी बर्दाश्त कर चुके हैं तो ६५ सालों कि आज़ादी ने हमारे दिमाग़ को ख़राब कर रक्खा है। हिंदुस्तान में अगर सबसे अहम् कोई चीज़ है तो वो है हमारी रिवायतें। उन्ही रिवायतों को क़ायम करते हुए जाईये और उन्ही भ्रष्ट नेताओं को वोट दीजिये जिनसे कम से कम ये तो मालूम है कि कुछ नहीं बदलेगा। गुलाब का शरबत पीने से दो मिनट कि थकन  चाहे  दूर होती हो ज़िन्दगी गुलाबी नहीं होती।

हाँ वोटिंग कार्ड बनवाना न भूलें।

Monday, March 03, 2014

Kumar Vishwas ke sher par mera addon

कुमार विश्वास ने एक शेर ट्वीट किया: 
बहुत भले हैं मगर मुश्किलों में रहते हैं,
हमारे ख्वाब भी बिल्कुल हमारे जैसे हैं। 

मैंने दो लाइन्स और add कर दी हैं:
बदल सकते तो बदल लेते अपने ख्वाब किसी और से,
क्या करें उस ख्वाब को सच्चाई बना बैठे हैं ।