Wednesday, September 03, 2014

Another my extenstion to Kumar Vishwas's poem

 कुमार विश्वास ने ट्वीट किया:
जो बसेरा है अपनी रातों का ,सब उसे आसमान कहते हैं. 
 छत पे बारिश ने रात काटी है ,गीले-गीले निशान कहते हैं. 
मैंने कुछ और बढ़ा दिया:
जिधर देखो उधर बस अहबाब की भीड़ है,
तो अकेलापन केवल हम क्यों सहते हैं?