Thursday, May 05, 2016

ऐसे ही

अरमानों की थाली पर कुछ स्वप्न सजाए जाते हैं,
कुछ पूरे कुछ आधे होते कुछ रुला रुला कर जाते हैं।
जीवन है - सीखे स्वप्नों से, उपलब्धि से और दण्डो से,
वो भारी भारी पल ही हैं जो जेबों में रह जाते हैं।
बस एक दो पल की हंसी में ही वर्षों के आंसू बह जाते हैं,
कुछ रुला रुला कर जाते हैं।

मैंने ये देखा वो देखा अपनों को बंधक देखा है,
अपने ही तलवारों से खुद को भी कटते देखा है,
क्या पाया क्या खोया है खुद समय में बंधते देखा है,
जर्जर होती कुछ काया को साड़ी में लिपटे देखा है,
क्या सोचूँ क्या कर्म करूँ क्या पढ़ूँ, और मैं क्या समझूँ?
वो अपनों से लगने वाले ही डस कर तुझको जाते हैं,
कुछ रुला रुला कर जाते हैं।