tag:blogger.com,1999:blog-141423022024-03-23T11:14:48.132-07:00Ashish's thoughts<b>Disclaimer:</b> Thoughts expressed are mine and my only. Why would it be anybody's else? Anyone using the blogs without citing my name is liable for legal action.<p><b>इस ब्लॉग में सभी पोस्ट्स मेरी स्वयं की रचनाएँ हैं जो कोम्मोंस कॉपीराईट द्वारा सुरक्षित हैं। जो उद्धहरण दूसरों से लिए गए हैं वह या तो कोटेड हैं या उनके मूल रचनाकारों या प्रोडक्ट्स के नाम उद्धत हैं।</b></p>Unknownnoreply@blogger.comBlogger781125tag:blogger.com,1999:blog-14142302.post-39669229042719597852023-04-30T09:00:00.003-07:002023-04-30T09:00:16.830-07:00बस ऐसे ही मुखौटा लगा कर जी रहा हूँ मैं,आदत यूँ पड़ी है कि मुखौटा बन गया हूँ मैं Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-14142302.post-79421976725563816802023-04-12T10:37:00.009-07:002023-04-12T10:37:57.788-07:00वही पुरानी कहानी दो बेटे थे, पिता की दुकान थी, बाजार में अच्छी चलती थी, सभी इर्षा करते
थे| बेटों की शादियां हुईं, उनके बच्चे भी बड़े होने लगे| बहुएँ बाकी
दुकानदारो के परिवार के साथ उठने बैठने लगीं| पिता की तबियत ख़राब रहने लगी|
कभी बच्चों की पढ़ाई कभी तबियत की वजह से बेटे दुकान में ना बैठ पाते थे|
आपस में झिकझिक होने लगी| घूमने के लिए रक्खा पैसा घर के कामों के लिए लगने
लगा| बहुएँ कुछ अपने को छोटा महसूस Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-14142302.post-72953424925436091242023-04-07T09:24:00.005-07:002023-04-07T09:24:49.850-07:00रिश्ते रिश्तों की लाश पर उगता पेड़ अक्सर हरा ही होता है पर सोना मिट्टी में चुपड़ा भी, खरा ही होता है पानी बेझिझक बहता तो केवल बाढ़ लाता है प्यासे के मगर एक पास केवल घड़ा ही होता है Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-14142302.post-85335829123863159472023-04-01T10:37:00.007-07:002023-04-01T10:37:49.450-07:00बस ऐसे ही मुड़े होने से पन्नों पर लिखावट कम नहीं होतीअपने हैं सभी फिर भी, शिकायत कम नहीं होतीकितने भूल करते हम, न जाने क्यों भटकते हैं?अँधेरा हो भी मस्जिद में, इनायत कम नहीं होती|Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-14142302.post-26261504226379676142023-03-31T12:52:00.007-07:002023-04-01T10:36:02.790-07:00बस ऐसे हीपुरानी दोस्ती की एक नई फोटो अक्सर
नई फोटो में कुछ पुराने लोग
नए संग में कुछ पुरानी यादें
पुरानी यादों से निकले कुछ नए ख्वाब
ख्वाबों की ताबीर को कुछ नए कदम
नए कदम, पर वही पुरानी सड़क
पुरानी सड़क में कुछ नए मील के पत्थर
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-14142302.post-3960923619805402032023-02-24T22:59:00.003-08:002023-02-24T22:59:11.979-08:00बस ऐसे ही बरसाती पानी से हैं कुछ, फूली फूली दीवारेँ खिड़की कम हैं परदे ज्यादा, बिछी हुई हैं अख़बारें पथरीली आँखों के पीछे छिपे हुए हैं सपनो सी,शब्दकोष में बिछड़ गए हैं उम्मीदों की बौछारें | कहना जो है मालूम सबको, जो बैठे जो सुनते हैं वो ना पूछें, जो सोचा है, खिंची आँखों की तलवारें ये घर है, है वही पुराना, समय है केवल बदला सा,अपने अपने व्यूह में फँस कर अभिमन्यु है थक हारे| Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-14142302.post-42066832666685444282022-12-19T17:01:00.001-08:002022-12-19T17:01:38.155-08:00 एक और सुनो एक मनुष्य था उसकी आँखें थीं कुछ सपने थे कुछ साहस था कुछ कदम थे उसको चलने,कभी धुप रही कभी पावस था| जीवन भट्टी में झोंक दिया,तप कर, निखर के आने को सोना था या पानी भाप बना,कुछ करने का दुस्साहस था| कुछ लोग मिले कुछ बिछड़े भी,कोई संग चला, कोई नाविक थाअपना अपना एक स्वर्ग बना दोनों बाहों में भरता था| जब आँख खुली तो सपने थे कुछ टूटे, कुछ अँगारों में,पर अब भी देख सकता था वो,उस Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-14142302.post-23147899796330480592022-09-17T10:01:00.005-07:002022-09-17T10:01:24.019-07:00 एक और शेर समय में पीछे ना जाकर, आज तेरे दिल में आना है समझ तो ये सकूँ आखिर, नजरिया है, या बहाना है?मेरे इलज़ाम सर पर है की मैंने आँख न खोली,ये कैसे कह दूँ मैं तुझको, मुझे सागर छिपाना हैUnknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-14142302.post-63108681752609036192022-05-19T10:10:00.002-07:002022-05-19T10:10:10.006-07:00एक और सुनो खुदा के नाम पर हमें लूटते रहे ज़र्रे ज़र्रे में था, हम बस ढूंढते रहे बिछायी ज़िन्दगी यूँ कि हम फैलते दिखें,सिमट से रह गए हैं वक़्त, हम बस रूठते रहे Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-14142302.post-39016732527916429502022-03-29T13:07:00.002-07:002022-03-29T13:07:18.392-07:00 इस बार एक कहानी दो लोग अपने प्यारे घोड़े पर बैठ कर अपने गॉव जा रहे थे, तभी उनको एक नदी दिखाई दी| नदी में पानी का बहाव तेज़ था और जाना उस पार था, बाढ़ की वजह से पानी भी चढ़ा हुआ था| दोनों को एक छोटी सी नाव दिखाई दी, वहीँ दो बड़े बड़े पतवार भी थे| उन्होंने विमर्श किया, छोटी नाव में घोड़ा नहीं आ पाएगा पर वो दोनों बैठ जायेंगे, क्योंकि घोड़े को तैरना आता है, पर बहाव की वजह से कहीं बह ना जाए इसलिए उसकी लगाम नाव में बाँध देंगेUnknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-14142302.post-87181114665425502502021-08-24T13:22:00.005-07:002021-08-24T15:40:05.142-07:00इस बार कुछ अलग सा कुछ बूढ़े हो चले पर, हम में भी कभी चार्म था मोस्ट्ली केयरिंग थे, पर कुछ कुछ कभी हार्म था हैफ़ेज़ार्ड सी ज़िन्दगी थी, फिर भी एक नॉर्म था घर अपना था फिर भी लगता एक डोर्म था दोस्तों के बियर के संग चाय मेरा वार्म था सोते अपने मर्ज़ी से थे पर जगाता अलार्म था अब मुस्कुराते हैं, कैसे थे कैसे हो चले हैं,रोल छोटे छोटे सही, पर बड़ा बड़ा काम था Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-14142302.post-29686245176961120122021-08-12T22:55:00.006-07:002021-08-13T10:49:27.591-07:00एक और सुनो कलम होते हैं सर कलम हो जाएपर कलम लिख जाए तारीख़ और - ला ज़वाल हो जाए! Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-14142302.post-44302719066368449002021-06-15T01:27:00.006-07:002021-06-15T01:29:56.637-07:00एक और सुनो कुछ तेरी नज़रों का फ़र्क़, कुछ ये शैदाई दौर है,जिसे तू शद्दाई समझ बैठा, वो मैं नहीं कोई और है Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-14142302.post-10310221150386999502021-06-10T11:10:00.003-07:002021-06-10T11:10:17.368-07:00एक और सुनो क्या उर्दू से झगड़ा, क्या हिंदी से प्रेम रंग है धरम का, सब पोलिटिकल गेम भाषा को छोड़, परिभाषा में उलझ कर,क्या मिलेगा हमें, जब हम सब हैं सेम?Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-14142302.post-64210261326432214562021-06-07T12:11:00.002-07:002021-06-07T12:11:08.586-07:00एक और सुनो आँसू से लिखें हैं रिश्तों की इबारत,ख़ून से गाढ़ा है मेरे नज़र का पानी सलाम उन्हें भी, भूल चुके हैं जो मुझको,छोटी है, पढ़ लेना मेरी कहानी! Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-14142302.post-11415224644931167692021-04-20T12:12:00.003-07:002021-04-20T12:12:21.353-07:00लखनऊहज़ारों बार निकले हैं इसी गंज से, ऐशबाग़ सेचौक दूजा घर ही था, स्कूल, क़ैसरबाग़ से बाग़ आलम से निकल जाते थे अमीनाबाद को जब किताबों के लिए, रुके कुल्फी प्रकाश को तहज़ीब क्या है ये पता शायद पढ़ाया था नहीं झुक के मिलते ज़रूर थे, अजनबी पहले आप से लखनवी क्या हम हैं? मालूम आजतक मुझको नहीं,शर्मा या टुंडे है, सुना देखा पर रुक के खाया नहीं लखनऊ बाज़ार है ऐसा कभी सोचा न था, पर यूँ कहूँ Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-14142302.post-30254883596977941772021-04-18T21:20:00.003-07:002021-04-18T21:20:29.184-07:00Save the humanityThis was so personal to me but I would share a story, a true story as we lived through it. Corona pandemic, its being out of control has inspired me to share it.After completing her Phd in Sanskrut Literature my elder sister opted to do Masters in Acharya, Karmkand. Most of her batch mates were there for a professional reason, were associated to some religious group. She was the only one who Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-14142302.post-70053230162817308732021-02-20T11:59:00.008-08:002021-02-20T12:17:49.156-08:00एक और सुनो कहाँ मालूम था लफ़्ज़ों की नज़्र होती है?नज़रों में लफ्ज़ ढूँटते रहे, ख्वाह-म-ख्वाह रोती है Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-14142302.post-34873334483113584802021-01-19T10:09:00.002-08:002021-01-19T10:09:55.787-08:00 एक और सुनो तुम्हारी दौर में हूँ, इसलिए ग़ुमनाम हूँ यूँ बस,कुछ लोग तब भी हैं, जिन्हें मैं याद आता हूँ तुम्हारे नाम के जलसे लगा करते हों शहरों में,मैं हूँ जो क़स्बों में बुलावे बाँट आता हूँ Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-14142302.post-19730946343588316842020-11-03T15:16:00.001-08:002020-11-03T15:16:04.245-08:00 एक और सुनो मेरी याद आये तो क़िताबों को चूम लेना,पन्नो पर न सही, उनके बीच रहा करते थे!कभी फूल, पत्ती, कभी कलम की निशानों पर,मेरी तस्वीर न सही, तेरी यादों में बसा करते थे!!!Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-14142302.post-42517449780637437152020-07-22T11:49:00.001-07:002020-07-22T11:49:36.227-07:00एक और सुनो
इक ज़मीन,
कुछ फ़लों के पेड़,
कुछ क्यारियाँ, एक दो किलकारियाँ
कुछ कमरे, इक छत
पानी न ठहरने वाली फ़र्श
कुछ हाथ हमेशा साथ
एक मुस्कुराहट
क्या इतना महंगा था ये ख्वाब?
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-14142302.post-901194873642343742020-01-24T12:46:00.001-08:002020-01-24T12:46:31.799-08:00एक शेर लखनवी पर
ऐसा नहीं है सब लखनवी शायर ही होते हैं,
मिजाज़ बस ऐसा है जो शायराना लगता है |
मिलोगे उनको, तुम्हे लगेंगे बस अपने ही जैसे,
बस तल्लफ़ुज़ कुछ ऐसा है, याराना सा लगता है |
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-14142302.post-11286711900954686072020-01-24T12:20:00.001-08:002020-01-24T12:20:49.698-08:00एक और शेर
ज़िन्दगी उधार की नहीं है, जिसे जी रहा हूँ मैं
बस इधर उधर की बात है, जिसे पी रहा हूँ मैं
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-14142302.post-29466969627177650852020-01-24T12:01:00.001-08:002020-01-24T12:01:33.291-08:00 एक शेर लखनऊ पर
यूँ रह गयी है शहर-ए-अदब लखनऊ अब मेरी,
शहर-ए-सुखं छिपा है ताख़ पर, बस दबदबा चल रहा|
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-14142302.post-86152627613142797672019-11-01T08:53:00.000-07:002019-11-01T08:53:01.074-07:00एक सुनो दिल्ली के धुएँ पर
किस कम्बख्त ने धुऐं को बुरा कहा?
दिल सुलगता है, फेफड़े जलते हैं, तब कहीं उठता है|
इन गाड़ियों खेतों पर मत जाना,
इंसानी फितरत है, चाह जीने की, पर खुद ही मिटता है|
Unknownnoreply@blogger.com0