एक धोबी के पास कुछ गधे थे। धोबी नदी के पास ही रहता था। रोज़ वह गाँव जाता, लोगों के कपड़े गधों पर लाद कर नदी जाता और धो और सुखा कर गधों पर ही लाद कर गाँव वालों को दे देता था। ऐसा कई वर्षों तक करने के बाद वो और उसके गधे काफी मोटे हो गए। एक दिन नदी ने अपना रास्ता बदल दिया। वह जंगल के उस पार से बहने लगी। चूंकि धोबी और उसका गाँव तो इस पार ही थे वह कपड़े तो जल्दी ही ले आता था, पर अब उसे जंगल पार कर के नदी पे जाना होता था। ना धोबी को ही जंगल के रास्ते पता थे न ही उसके गधे ही जंगल के रास्तों के लिए बने थे। धोबी और उसके गधे भूख के मारे परेशान रहने लगे। कुछ गाँव वालों ने उसे सलाह दी क्यूँ न वो एक घोड़ा खरीद लाये? उस पर बैठ कर वो जंगल भी पार कर लेगा और गधे भी उसके पीछे पीछे चल कर रास्ता जान लेंगे।
धोबी एक घोड़ा खरीद लाया। वह रोज सुबह घोड़े पर बैठ कर गाँव जाता गधों पर कपड़े लादता और जंगल के रास्तों से हो कर नदी पर जा कर कपड़े धो कर शाम होते जंगल के रास्ते होते हुए वापस घर आ जाता। क्यूंकि घोड़ा तो जंगल के रास्तों के लिए ही बना था, धोबी उस पर बैठ कर बहुत जल्दी जल्दी आता जाता रहा। गधों को इससे परेशानी होने लगी। एक तो धोबी गधों को भूल घोड़े पर बैठ शान दिखाने लगा, दूसरे जंगल के रास्ते होते हुए घोड़े के भरोसे अंधेरों से निकलना उन्हें नागवार गुज़रने लगा।
उधर धोबी को भी घोड़े पर बैठने की आदत तो नहीं थी। खुद भी मोटा हो जाने और घोड़े की चाल की वजह से उसे भी धीरे धीरे घोड़े पर गुस्सा आने लगा। वह आखिर था तो आदी धीरे धीरे नाटे गधों पर ही चलने का। धोबी की मुश्किल ये थी की उसे घोड़ा तो चाहिए था, उसे दिखा कर उसे गाँव वालों पर रौब भी झाड़ना था पर उसपर लगाम भी रखनी थी। उसने बड़ा ही उम्दा इलाज ढूँढा।
कुछ दिनों बाद उसने गधों से कहा की तुम्हे अब जंगल का रास्ता पता है। तुम लोग कपड़ों के साथ आगे आगे चलो और वह घोड़े पर बैठ कर उनके पीछे पीछे चलेगा। उसने घोड़े को अनुयायी बना दिया। गधे तो गधे थे। छोटे छोटे पानी के गड्ढों से न जाना पड़े इसलिए वो सूखे लम्बे रास्तों से ही जाते थे। घोड़ा ये जानते हुए की पानी के गड्ढे उसके लिए कुछ नहीं हैं तब भी उसे गधों के रास्ते ही जाना पड़ता था। घोड़े के धीरे धीरे चलने की वजह से अब धोबी भी खुश रहने लगा। उसे अब गधों और घोड़े के फर्क की चिंता नहीं थी। घोड़ा भी खुद को इक गधा समझने लगा। घोड़े को छोड़ सभी खुश थे।
Thursday, September 15, 2011
इस बार इक कहानी सुनो
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