Monday, April 30, 2018

एक और

हम ही छत हैं खम्भे भी, पर-
फर्श हमारी तुम ही हो|
जुड़ते पिटते खड़ा हुआ हूँ, पर-
हर्ष हमारी तुम ही हो ||

एक और सुनो

हमने पानी में लहर बनाई पर पत्थर भी फेंका है,
जलती लकड़ी में भी आखिर अपने ठण्ड को सेका है,
कुछ पाने को थोड़ा थोड़ा बहुत बड़ा कुछ छोड़ा है,
मेरी छाया मुझसे लम्बी, अपनी आँखों का धोखा है|

Sunday, April 15, 2018

एक और सुनो

नींद का सौदा कर के, बेचैनी खरीद ली है|
घुट घुट के जी रहा था, अब थोड़ी सी पी ली है ||