Saturday, June 16, 2012

एक कविता

कोई वृक्ष चीखे न चीखे, बादल दर्द जान लेते हैं।
ढँक लें कितना ही पत्ते, पंछी दरख़्त पहचान लेते हैं।
कुछ प्रेम ऐसे हैं जिन्हें करना नहीं पड़ता,
न दिख कर भी कुछ लोग हाथ थाम लेते हैं।

Sunday, June 10, 2012

किसी दीवाने के साथ

With Kumar Vishwas and Pradeep Sundriyal





Thursday, June 07, 2012

और जनाब मैंने कहा है



खुदा तो हर जगह है दिखता कहीं नहीं ,
नशे कि लत में ही खुद में इक खुदा पाया।
होशोहवास में तो बस कुछ ही मस्जिदें दिखतीं हैं,
नशे में हर दर पे बस तेरा ही साया पाया।

-मिर्ज़ा आशीष