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Tuesday, July 01, 2025

एक और सुनो

क्या रच के बनाई है तकदीर मेरे मौला,
मेरा अक्स भी आईने में दिखे एक तस्वीर मेरे मौला।
जिसे खुद अपने ही भुला बैठे हों, उससे ये दोस्ती कैसी?
क्या लिखूं तुझको भी कोई तहरीर मेरे मौला?

  

Wednesday, June 18, 2025

अब लिख रहे हैं तो एक और सुनो

शहरों में अक्सर घर बेच कर मकान लिया करते हैं,
कुत्ते बिल्लियों में इंसान लिया करते हैं।  
रिश्ते तो बस अब हंसने पीने की ख्वाहिश है, 
खंजर तो अब तोहफों में दिया करते हैं।  
हम वहीँ हैं, बस दुनिया बदली सी लगती है,
आखिर चश्मे भी तो दुकानों से लिया करते हैं?

Tuesday, June 17, 2025

बहुत दिनों एक और सुनो

खता क़िस्मत की, सजा मुझे?
कैसी साझेदारी, सारा नफ़ा तुझे?
किसी और की आँखों से मेरी तस्वीर बना लेना,
कलम तो दिल की चुन लेता, 
बिखरे हैं कागज़ मुड़े मुड़े!


Sunday, April 30, 2023

बस ऐसे ही

मुखौटा लगा कर जी रहा हूँ मैं,
आदत यूँ पड़ी है कि मुखौटा बन गया हूँ मैं 


Friday, April 07, 2023

रिश्ते

 

रिश्तों की लाश पर उगता पेड़ अक्सर हरा ही होता है
पर सोना मिट्टी में चुपड़ा भी, खरा ही होता है
पानी बेझिझक बहता तो केवल बाढ़ लाता है
प्यासे के मगर एक पास केवल घड़ा ही होता है

 

 

Saturday, April 01, 2023

बस ऐसे ही

 मुड़े होने से पन्नों पर लिखावट कम नहीं होती
अपने हैं सभी फिर भी, शिकायत कम नहीं होती
कितने भूल करते हम, न जाने क्यों भटकते हैं?
अँधेरा हो भी मस्जिद में, इनायत कम नहीं होती|


Friday, March 31, 2023

बस ऐसे ही

पुरानी दोस्ती की एक नई फोटो अक्सर
नई फोटो में कुछ पुराने लोग
नए संग में कुछ पुरानी यादें
पुरानी यादों से निकले कुछ नए ख्वाब
ख्वाबों की ताबीर को कुछ नए कदम
नए कदम, पर वही पुरानी सड़क
पुरानी सड़क में कुछ नए मील के पत्थर

Friday, February 24, 2023

बस ऐसे ही

बरसाती पानी से हैं कुछ, फूली फूली दीवारेँ 

खिड़की कम हैं परदे ज्यादा, बिछी हुई हैं अख़बारें 

पथरीली आँखों के पीछे छिपे हुए हैं सपनो सी,

शब्दकोष में बिछड़ गए हैं उम्मीदों की बौछारें |

 

कहना जो है मालूम सबको, जो बैठे जो सुनते हैं 

वो ना पूछें, जो सोचा है, खिंची आँखों की तलवारें 

ये घर है, है वही पुराना, समय है केवल बदला सा,

अपने अपने व्यूह में फँस कर अभिमन्यु है थक हारे|



Saturday, September 17, 2022

एक और शेर

समय में पीछे ना जाकर, आज तेरे दिल में आना है
समझ तो ये सकूँ आखिर, नजरिया है, या बहाना है?
मेरे इलज़ाम सर पर है की मैंने आँख न खोली,
ये कैसे कह दूँ मैं तुझको, मुझे सागर छिपाना है

Thursday, May 19, 2022

एक और सुनो


खुदा के नाम पर हमें लूटते रहे
ज़र्रे ज़र्रे में था, हम बस ढूंढते रहे 

बिछायी ज़िन्दगी यूँ कि हम फैलते दिखें,
सिमट से रह गए हैं वक़्त, हम बस रूठते रहे

 

Tuesday, August 24, 2021

इस बार कुछ अलग सा

कुछ बूढ़े हो चले पर, हम में भी कभी चार्म था 

मोस्ट्ली केयरिंग थे, पर कुछ कुछ कभी हार्म था 

हैफ़ेज़ार्ड सी ज़िन्दगी थी, फिर भी एक नॉर्म था 

घर अपना था फिर भी लगता एक डोर्म था 

दोस्तों के बियर के संग चाय मेरा वार्म था 

सोते अपने मर्ज़ी से थे पर जगाता अलार्म था 

अब मुस्कुराते हैं, कैसे थे कैसे हो चले हैं,

रोल छोटे छोटे सही, पर बड़ा बड़ा काम था 

 

Thursday, August 12, 2021

एक और सुनो

कलम होते हैं सर कलम हो जाए
पर कलम लिख जाए तारीख़ और -
ला ज़वाल हो जाए!


Tuesday, June 15, 2021

एक और सुनो

कुछ तेरी नज़रों का फ़र्क़, कुछ ये शैदाई दौर है,
जिसे तू शद्दाई समझ बैठा, वो मैं नहीं कोई और है

 


Thursday, June 10, 2021

एक और सुनो

क्या उर्दू से झगड़ा, क्या हिंदी से प्रेम 

रंग है धरम  का, सब पोलिटिकल गेम 

भाषा को छोड़, परिभाषा में उलझ कर,

क्या मिलेगा हमें, जब हम सब हैं सेम?

Monday, June 07, 2021

एक और सुनो

आँसू से लिखें हैं रिश्तों की इबारत,
ख़ून से गाढ़ा है मेरे नज़र का पानी
सलाम उन्हें भी, भूल चुके हैं जो मुझको,
छोटी है, पढ़ लेना मेरी कहानी!

 


Tuesday, April 20, 2021

लखनऊ

हज़ारों बार निकले हैं इसी गंज से, ऐशबाग़ से

चौक दूजा घर ही था, स्कूल, क़ैसरबाग़ से 

बाग़ आलम से निकल जाते थे अमीनाबाद को 

जब किताबों के लिए, रुके कुल्फी प्रकाश को 

तहज़ीब क्या है ये पता शायद पढ़ाया था नहीं 

झुक के मिलते ज़रूर थे, अजनबी पहले आप से 

लखनवी क्या हम हैं? मालूम आजतक मुझको नहीं,

शर्मा या टुंडे है, सुना देखा पर रुक के खाया नहीं 

लखनऊ बाज़ार है ऐसा कभी सोचा न था, पर यूँ कहूँ -

है दर्द जब जब हुआ इस शहर-ए-सुखं को जब कभी,

महसूस रग रग में हुआ है, इक दिल-इ-बर्बाद से


 

 


Saturday, February 20, 2021

एक और सुनो

कहाँ मालूम था लफ़्ज़ों की नज़्र होती है?

नज़रों में लफ्ज़ ढूँटते रहे, ख्वाह-म-ख्वाह रोती है 


Tuesday, January 19, 2021

एक और सुनो

तुम्हारी दौर में हूँ, इसलिए ग़ुमनाम हूँ यूँ बस,

कुछ लोग तब भी हैं, जिन्हें मैं याद आता हूँ 

तुम्हारे नाम के जलसे लगा करते हों शहरों में,

मैं हूँ जो क़स्बों में बुलावे बाँट आता हूँ


Tuesday, November 03, 2020

एक और सुनो

मेरी याद आये तो क़िताबों को चूम लेना,

पन्नो पर न सही, उनके बीच रहा करते थे!

कभी फूल, पत्ती, कभी कलम की निशानों पर,

मेरी तस्वीर न सही, तेरी यादों में बसा करते थे!!!


Wednesday, July 22, 2020

एक और सुनो

इक ज़मीन,
कुछ फ़लों के पेड़,
कुछ क्यारियाँ, एक दो किलकारियाँ
कुछ कमरे, इक छत
पानी न ठहरने वाली फ़र्श
कुछ हाथ हमेशा साथ
एक मुस्कुराहट
क्या इतना महंगा था ये ख्वाब?