बीते हुए उन सालों की जो याद मुझे अब आती है,
कभी पलकें गीली होती हैं कभी मुस्कां सी छा जाती है।
वो अल्ल्ढ़पन, वो बेफिक्री, वो दीवानों सा ढंग मेरा,
निकले बाहर उस गुलशन से बस याद वही रह जाती है।
वो चाय समोसों की शामें, अनबन सी होती कुछ बातें,
जनम जनम के बैर कहीं इक हंसी में जो घुलजाती है,
बीते हुए उन सालों की जो याद मुझे अब आती है।
वो पागलपन, वो शर्माना, वो धमकी वो सीना ताना,
वो आदत कुछ कुछ गन्दी सी, संकल्पों का खुद मिट जाना,
वो अनजान जो लगते थे अपने, बेहतर थे अपने वालों से,
राज़ जो थोड़े से अपने बतलाई उन्ही से जाती है,
बीते हुए उन सालों की जो याद मुझे अब आती है।
पलकें थोड़ी सी गीली है मुस्कान अच्छी सी आती है,
निकले हैं बाहर गुलशन से बस याद वही रह जाती है।
कभी पलकें गीली होती हैं कभी मुस्कां सी छा जाती है।
वो अल्ल्ढ़पन, वो बेफिक्री, वो दीवानों सा ढंग मेरा,
निकले बाहर उस गुलशन से बस याद वही रह जाती है।
वो चाय समोसों की शामें, अनबन सी होती कुछ बातें,
जनम जनम के बैर कहीं इक हंसी में जो घुलजाती है,
बीते हुए उन सालों की जो याद मुझे अब आती है।
वो पागलपन, वो शर्माना, वो धमकी वो सीना ताना,
वो आदत कुछ कुछ गन्दी सी, संकल्पों का खुद मिट जाना,
वो अनजान जो लगते थे अपने, बेहतर थे अपने वालों से,
राज़ जो थोड़े से अपने बतलाई उन्ही से जाती है,
बीते हुए उन सालों की जो याद मुझे अब आती है।
पलकें थोड़ी सी गीली है मुस्कान अच्छी सी आती है,
निकले हैं बाहर गुलशन से बस याद वही रह जाती है।
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