Tuesday, May 30, 2017

एक और सुनो

देखा है रस्सी को लटकते हुए,
उसकी गाँठों पर पैर रख लोगों को चढ़ते हुए|



Monday, May 29, 2017

एक और शेर

किसे पूछूँ कहाँ हूँ मैं, सभी भूले से लगते हैं,
मुझे अक्सर परायापन किसी अपने से मिलते हैं|
खड़ा ये सोचता हूँ क्या निकालूँ राह मैं अपनी,
ये पत्थर मील के न बनकर, हमारे सर बरसते हैं||