Monday, December 19, 2022

एक और सुनो

एक मनुष्य था उसकी आँखें थीं
कुछ  सपने थे कुछ साहस था
कुछ कदम थे उसको चलने,
कभी धुप रही कभी पावस था|  


जीवन भट्टी में झोंक दिया,
तप कर, निखर के आने को
सोना था या पानी भाप बना,
कुछ करने का दुस्साहस था| 


कुछ लोग मिले कुछ बिछड़े भी,
कोई संग चला, कोई नाविक था
अपना अपना एक स्वर्ग बना
दोनों बाहों में भरता था| 


जब आँख खुली तो सपने थे
कुछ टूटे, कुछ अँगारों में,
पर अब भी देख सकता था वो,
उस अंतर्मन की आँखें थीं,
वो मनुष्य था उसकी आँखें थी| 

 



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