बरसाती पानी से हैं कुछ, फूली फूली दीवारेँ
खिड़की कम हैं परदे ज्यादा, बिछी हुई हैं अख़बारें
पथरीली आँखों के पीछे छिपे हुए हैं सपनो सी,
शब्दकोष में बिछड़ गए हैं उम्मीदों की बौछारें |
कहना जो है मालूम सबको, जो बैठे जो सुनते हैं
वो ना पूछें, जो सोचा है, खिंची आँखों की तलवारें
ये घर है, है वही पुराना, समय है केवल बदला सा,
अपने अपने व्यूह में फँस कर अभिमन्यु है थक हारे|