तस्वीर मेरी देख कर जो सब कुछ समझ गए,
फिर क्या ज़रुरत मैं तुमसे कहीं मिलूँ?
गर मूक कागजों में ही मैं रह सकूँ हर वक़्त,
कसम मुझे है जो दर्द मैं अपना तुझे कहूँ।
Thursday, July 08, 2010
बहुत दिनों बाद एक शेर
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तस्वीर मेरी देख कर जो सब कुछ समझ गए,
फिर क्या ज़रुरत मैं तुमसे कहीं मिलूँ?
गर मूक कागजों में ही मैं रह सकूँ हर वक़्त,
कसम मुझे है जो दर्द मैं अपना तुझे कहूँ।
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