Monday, November 08, 2010

A poem to salute soldiers fighting Militancy

(To the God almighty)
अभय दो अभय दो अभय दो अभय दो,
इस हिंसा की नगरी में मुझको विजय दो।
मैं सब कुछ हूँ छोड़ आया इनको बचाने,
इन मासूम बच्चों को ममता ह्रदय दो।
(A message to the enemies)
अगर अरि ये सोचे वो रण जीत लेगा,
इन भारत के बच्चों को वो मीन्झ लेगा,
तो सुन लो ओ बाग़ी संभल लो ज़रा सा,
इन सिंग्हो की गर्जन में तू होगा डरा सा,
जो नफरत की अग्नी जला तू चला है,
बुझा दो बुझा दो बुझा दो बुझा दो।
अभय दो मुझे तुम अभय दो अभय दो।
(Now a plea to terrorists)
जो घर तू है तोड़े वो तेरा ही घर है,
तेरी चीखों में तेरे ही बच्चों का स्वर है,
तेरा कुछ ना होगा जो भूला तू राहें,
जिन हाथों को तोड़े वो तेरी हैं बाहें,
हे इश्वर ओ अल्लाह अब इनको समझ दो।
अभय दो अभय दो अभय दो अभय दो।

No comments: