Friday, November 01, 2019

एक सुनो दिल्ली के धुएँ पर


किस कम्बख्त ने धुऐं को बुरा कहा?
दिल सुलगता है, फेफड़े जलते हैं, तब कहीं उठता है|
इन गाड़ियों खेतों पर मत जाना,
इंसानी फितरत है, चाह जीने की, पर खुद ही मिटता है|

Tuesday, October 22, 2019

सुनो

जो लिखा हुआ वो झूठ नहीं,
सच है, बस तुझे मंज़ूर नहीं
तुम हँसते हो मुझ पर लेकिन,
क्या भूल गए कुछ याद नहीं?
 

Wednesday, July 03, 2019

एक और सुनो

कमज़ोर होती आँखों में कुछ दुनिया की धूल है,
कुछ नैतिकता की चमक कुछ आँसू, कुछ भूल है
दिखाई दे न दे क्या आगे है मेरे,
मुझे मालूम है मगर पास क्या है मेरे, क्या दूर है

Thursday, May 23, 2019

सुनो

अपने ही मुझको भूल गए, क्या गिला किससे?
हमारे दिन भी अकेले हैं, बस ख्याली किस्से||

Thursday, January 31, 2019

क्या लिखूं?


खुद को क्यूँ पहचाना लगता हूँ,
मर तो कब का चुका, क्यूँ चलता रहता हूँ?