Friday, January 24, 2020

एक शेर लखनवी पर

ऐसा नहीं है सब लखनवी शायर ही होते हैं,
मिजाज़ बस ऐसा है जो शायराना लगता है |
मिलोगे उनको, तुम्हे लगेंगे बस अपने ही जैसे,
बस तल्लफ़ुज़ कुछ ऐसा है, याराना सा लगता है | 


एक और शेर

ज़िन्दगी उधार की नहीं है, जिसे जी रहा हूँ मैं
बस इधर उधर की बात है, जिसे पी रहा हूँ मैं

एक शेर लखनऊ पर

यूँ रह गयी है शहर-ए-अदब लखनऊ अब मेरी,
शहर-ए-सुखं छिपा है ताख़ पर, बस दबदबा चल रहा|