Wednesday, April 12, 2023

वही पुरानी कहानी

दो बेटे थे, पिता की  दुकान थी, बाजार में अच्छी चलती थी, सभी इर्षा करते थे| बेटों की शादियां हुईं, उनके बच्चे भी बड़े होने लगे| बहुएँ बाकी दुकानदारो के परिवार के साथ उठने बैठने लगीं| पिता की तबियत ख़राब रहने लगी| कभी बच्चों की पढ़ाई कभी तबियत की वजह से बेटे दुकान में ना बैठ पाते थे| आपस में झिकझिक होने लगी| घूमने के लिए रक्खा पैसा घर के कामों के लिए लगने लगा| बहुएँ कुछ अपने को छोटा महसूस करने लगीं, पार्टियों से दूरी रहने लग गयीं. बाकी दुकानदारों के परिवार का घर में आना जाना बढ़ गया| कुछ केवल छोटी बहु से मिलतीं तो कुछ बड़ी बहु से| चाय नाश्ता भी अलग बनने लगा| अब रात का खाना भी लोग अलग अलग समय करने लगे, अक्सर  अपने कमरे में ही| सोशल प्रेशर की वजह से दुकान अलग अलग कर दिया| भाई भाई अलग हो गए| दोनों परिवार अब अपने पिता से अमीर थे पर उनकी बाज़ार में साख चली गयी|

Motto of the story is - अपनी छोटी परेशानियों में अगर बाहर वाले इन्वॉल्व होंगे तो केवल घर ही टूटेगा| 




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