Thursday, February 10, 2011

चलो एक मज़हब पर शेर

नारंगी हरियर हुआ, अपना अपना रंग,
पर मंदिर मस्जिद एक है, जो तू है भिखमंग।
फिरता माला फिर रहा, चढ़ा किताबी भंग,
ना जाना इक राह वो जिसपे चलें सब संग।

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