कुछ गुंडों और दलालों का भला करने से अगर डेमोक्रेसी चलती हो तो पूरे जनता का भला करने कि क्या ज़रुरत है? बोल के शांत होने वाले तो पिछले ६५ सालों से हिंदुस्तान में जन्मते रहे हैं, metaphorically ना राज बदला है न राजा, हाँ नाराज़गी हमेशा रही है। जात, धर्म, भाषा, क्षेत्रीयता ऐसे बहुत से मसले हैं जिसमे रोज़ की अज़ियतों को दिल से निकाला जा सके। तो? आपस में लड़ते रहिये। अगर हमारे पूर्वज सैकड़ों सालों कि ग़ुलामी बर्दाश्त कर चुके हैं तो ६५ सालों कि आज़ादी ने हमारे दिमाग़ को ख़राब कर रक्खा है। हिंदुस्तान में अगर सबसे अहम् कोई चीज़ है तो वो है हमारी रिवायतें। उन्ही रिवायतों को क़ायम करते हुए जाईये और उन्ही भ्रष्ट नेताओं को वोट दीजिये जिनसे कम से कम ये तो मालूम है कि कुछ नहीं बदलेगा। गुलाब का शरबत पीने से दो मिनट कि थकन चाहे दूर होती हो ज़िन्दगी गुलाबी नहीं होती।
हाँ वोटिंग कार्ड बनवाना न भूलें।
हाँ वोटिंग कार्ड बनवाना न भूलें।
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