हिन्दू परंपरा में अतिथि को देव या ईश्वर कहा गया है। लेकिन अतिथि कौन है? अतिथि मेहमान नहीं है। अगर आप किसी समारोह के लिए अपने दोस्तों और परिवार के सदस्यों को आमंत्रण दें तो हम यह कहते ज़रूर हैं की ये मेरे अतिथि हैं लेकिन तिथि तो हमने पहले से ही तय कर दी तो वो अ-तिथि कैसे हो सकते हैं?
अतिथि तो वो हुआ जो तिथि देख के ना आये, खुद ही आ जाए और जो खुद आ जाए वही तो ख़ुदा है।
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