कुछ बदली बदली शाम थी,
नई दुकान पर पुरानी मकान थी,
पसीनो में कार पर साइकिल की शान थी,
बदले हुए चेहरों के बीच ये वही अवध-ए-शाम थी।
ऑटो में शायरी पर टांगों पे नवाब थे,
जूतों से ज्यादा बाटा के दुकान थे,
टुंडे कबाब के साथ रोटी भी रुमाल थे,
लखनऊ की शान में लोगों के जमाल थे।
नई दुकान पर पुरानी मकान थी,
पसीनो में कार पर साइकिल की शान थी,
बदले हुए चेहरों के बीच ये वही अवध-ए-शाम थी।
ऑटो में शायरी पर टांगों पे नवाब थे,
जूतों से ज्यादा बाटा के दुकान थे,
टुंडे कबाब के साथ रोटी भी रुमाल थे,
लखनऊ की शान में लोगों के जमाल थे।
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