Monday, October 03, 2016

मुलाहिज़ा है

डॉ फ़ैयाज़ वजीह ने लिखा -
फ़िदा-ए-मुल्क होना हासिल-ए-क़िस्मत समझते हैं,
वतन पर जान देने ही को हम जन्नत समझते हैं

मैंने बढ़ा दिया -
वतन पर वो नहीं जिसको किसी सरहद से बाँधा हो,
हम अपनी रहनुमाईँ को बेइन्तेहाँ समझते हैं।

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