डॉ फ़ैयाज़ वजीह ने लिखा -
फ़िदा-ए-मुल्क होना हासिल-ए-क़िस्मत समझते हैं,
वतन पर जान देने ही को हम जन्नत समझते हैं
मैंने बढ़ा दिया -
वतन पर वो नहीं जिसको किसी सरहद से बाँधा हो,
हम अपनी रहनुमाईँ को बेइन्तेहाँ समझते हैं।
फ़िदा-ए-मुल्क होना हासिल-ए-क़िस्मत समझते हैं,
वतन पर जान देने ही को हम जन्नत समझते हैं
मैंने बढ़ा दिया -
वतन पर वो नहीं जिसको किसी सरहद से बाँधा हो,
हम अपनी रहनुमाईँ को बेइन्तेहाँ समझते हैं।
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