डॉ कुमार विश्वास ने लिखा:
ग़म में हूँ या हूँ शाद मुझे खुद पता नहीं,
मैं खुद को भी याद मुझे खुद पता नहीं.
मैं तुझको चाहता हूँ मगर माँगता नहीं,
मौला मेरी मुराद मुझे खुद पता नहीं !
मेरा जवाब:
बंद थी तेरी आँख, तुझे अब पता तो है,
खाली रही फ़रियाद, तुझे अब पता तो है,
कहीं सांप तो कहीं खंज़र थे आस्तीनों में,
काज़ी ही था जल्लाद, तुझे अब पता तो है|
ग़म में हूँ या हूँ शाद मुझे खुद पता नहीं,
मैं खुद को भी याद मुझे खुद पता नहीं.
मैं तुझको चाहता हूँ मगर माँगता नहीं,
मौला मेरी मुराद मुझे खुद पता नहीं !
मेरा जवाब:
बंद थी तेरी आँख, तुझे अब पता तो है,
खाली रही फ़रियाद, तुझे अब पता तो है,
कहीं सांप तो कहीं खंज़र थे आस्तीनों में,
काज़ी ही था जल्लाद, तुझे अब पता तो है|
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