Tuesday, July 01, 2025

एक और सुनो

क्या रच के बनाई है तकदीर मेरे मौला,
मेरा अक्स भी आईने में दिखे एक तस्वीर मेरे मौला।
जिसे खुद अपने ही भुला बैठे हों, उससे ये दोस्ती कैसी?
क्या लिखूं तुझको भी कोई तहरीर मेरे मौला?

  

Wednesday, June 18, 2025

अब लिख रहे हैं तो एक और सुनो

शहरों में अक्सर घर बेच कर मकान लिया करते हैं,
कुत्ते बिल्लियों में इंसान लिया करते हैं।  
रिश्ते तो बस अब हंसने पीने की ख्वाहिश है, 
खंजर तो अब तोहफों में दिया करते हैं।  
हम वहीँ हैं, बस दुनिया बदली सी लगती है,
आखिर चश्मे भी तो दुकानों से लिया करते हैं?

Tuesday, June 17, 2025

बहुत दिनों एक और सुनो

खता क़िस्मत की, सजा मुझे?
कैसी साझेदारी, सारा नफ़ा तुझे?
किसी और की आँखों से मेरी तस्वीर बना लेना,
कलम तो दिल की चुन लेता, 
बिखरे हैं कागज़ मुड़े मुड़े!


Thursday, September 19, 2024

चिट्ठी जिज्जी को

सब रोते हैं तुम्हारे जाने के बाद
छुप छुप कर, मैं भी 
फूट ना पड़ें, इसलिए बात नहीं करते 
पापा भी रोते थे, छुप छुप कर 
कभी सामने नहीं 
अब पापा भी नहीं हैं 
मिली होगी ना?
क्या कहते हो एक दुसरे से?
गुस्सा करती हो? अभी भी?
मुझ पर क्यों नहीं किया?
मतलबी क्यों नहीं थी तुम?
मेरी तरह, छुप छुप कर?



Sunday, April 30, 2023

बस ऐसे ही

मुखौटा लगा कर जी रहा हूँ मैं,
आदत यूँ पड़ी है कि मुखौटा बन गया हूँ मैं 


Wednesday, April 12, 2023

वही पुरानी कहानी

दो बेटे थे, पिता की  दुकान थी, बाजार में अच्छी चलती थी, सभी इर्षा करते थे| बेटों की शादियां हुईं, उनके बच्चे भी बड़े होने लगे| बहुएँ बाकी दुकानदारो के परिवार के साथ उठने बैठने लगीं| पिता की तबियत ख़राब रहने लगी| कभी बच्चों की पढ़ाई कभी तबियत की वजह से बेटे दुकान में ना बैठ पाते थे| आपस में झिकझिक होने लगी| घूमने के लिए रक्खा पैसा घर के कामों के लिए लगने लगा| बहुएँ कुछ अपने को छोटा महसूस करने लगीं, पार्टियों से दूरी रहने लग गयीं. बाकी दुकानदारों के परिवार का घर में आना जाना बढ़ गया| कुछ केवल छोटी बहु से मिलतीं तो कुछ बड़ी बहु से| चाय नाश्ता भी अलग बनने लगा| अब रात का खाना भी लोग अलग अलग समय करने लगे, अक्सर  अपने कमरे में ही| सोशल प्रेशर की वजह से दुकान अलग अलग कर दिया| भाई भाई अलग हो गए| दोनों परिवार अब अपने पिता से अमीर थे पर उनकी बाज़ार में साख चली गयी|

Motto of the story is - अपनी छोटी परेशानियों में अगर बाहर वाले इन्वॉल्व होंगे तो केवल घर ही टूटेगा| 




Friday, April 07, 2023

रिश्ते

 

रिश्तों की लाश पर उगता पेड़ अक्सर हरा ही होता है
पर सोना मिट्टी में चुपड़ा भी, खरा ही होता है
पानी बेझिझक बहता तो केवल बाढ़ लाता है
प्यासे के मगर एक पास केवल घड़ा ही होता है