पुकारें सुन सुन के वो खुदा शायद थक गया होगा,
ईमेल है नहीं मेरा "अच्छा है" ये फिर भी सोचता होगा।
गर चीखें मेल से आतीं तो कैसे हेल्प करता मैं,
जो टाइम खोलने में लगता बेचारा मर गया होता।
मोबाइल ना बनाया मैं पर उंगलियाँ दी बहुत सी हैं,
रहम एसेमेस से जो जाता, तू क्या मस्जिदों में बिल भरता?
Tuesday, February 02, 2010
इक कॉमेडी शेर
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