चलो होली के इस रुत में आज कुछ रंग हो जाए,
जो आशिक है छुपा बैठा, थोड़ा सा तंग हो जाए।
महक फूलों कि चादर मैं बना कैसे इसे ओढूँ?
हवा में खुशबुयें जो हैं, हमेशा संग हो जाए।
Friday, February 26, 2010
होली पर एक शेर
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Disclaimer: Thoughts expressed are mine and my only. Why would it be anybody's else? Anyone using the blogs without citing my name is liable for legal action. इस ब्लॉग में सभी पोस्ट्स मेरी स्वयं की रचनाएँ हैं जो कोम्मोंस कॉपीराईट द्वारा सुरक्षित हैं। जो उद्धहरण दूसरों से लिए गए हैं वह या तो कोटेड हैं या उनके मूल रचनाकारों या प्रोडक्ट्स के नाम उद्धत हैं।
चलो होली के इस रुत में आज कुछ रंग हो जाए,
जो आशिक है छुपा बैठा, थोड़ा सा तंग हो जाए।
महक फूलों कि चादर मैं बना कैसे इसे ओढूँ?
हवा में खुशबुयें जो हैं, हमेशा संग हो जाए।
1 comment:
Rang aur bhang ka aisa atoot nata hai,
Holi ke mahine main jab budget aata.
Sarkar muskati hai, janta ka dil kasmasata hai.
Janta ka dard uski behan muh boli hai.
Bura na mano holi hai..
Bura na mano Holi hai...
Post a Comment