हमने पानी में लहर बनाई पर पत्थर भी फेंका है,
जलती लकड़ी में भी आखिर अपने ठण्ड को सेका है,
कुछ पाने को थोड़ा थोड़ा बहुत बड़ा कुछ छोड़ा है,
मेरी छाया मुझसे लम्बी, अपनी आँखों का धोखा है|
जलती लकड़ी में भी आखिर अपने ठण्ड को सेका है,
कुछ पाने को थोड़ा थोड़ा बहुत बड़ा कुछ छोड़ा है,
मेरी छाया मुझसे लम्बी, अपनी आँखों का धोखा है|
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