Thursday, January 13, 2011

चलो शेर सुनो

अपना रस्ता छोड़ के मैं क्यूँ यूँ मुड़ा था?
कुछ तो तेरे अश्क थे, शायद कुछ मैं थका था।
ठौर वो ली जिस पर देखा फूल थे,
छुप रहा वो शूल मुझे दिख न सका था।
अब पड़ा हूँ थक रहे पैरों को लेकर,
धूप की गरमी को इक कम्बल समझकर,
हाथ मेरे पड़ रहे उन शूल पर,
झुकती जाती दर्द से अब ये कमर,
भागना क्यूँ छोड़ कर देखा समय?
शायद वो तेरे अश्क थे या मैं थका था,
अपना रस्ता छोड़ के जब यूँ मुड़ा था।

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