Sunday, September 04, 2016

फिर से एक

खुद पर ही शायद हँसता था, फिर भी हँसता रहता था।
बस अब इतना ग़म है यारों, हँसना पूरा भूल गया।
पीने की तो आदत ना थी, मुखमुर फिर भी साथ में थे।
मैख़ाना जब से छूटा है, जीना पूरा भूल गया।
हँसना पूरा भूल गया।


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