किताबें पढ़ पढ़ के सोचा था कि हाफिज़ मैं बनुंगा इक दिन,
खुदा रग रग में रहता है खोजता मैं किताबों में!
कि सोचा था मुझे बस मिल गई ताबीज़ आयत की,
भटकता फ़िर भी रहता हूँ इन आइनों की गलियों में!!
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