ना पूछो मेरा आसमां पे क्यूँ घर बना न था?
सितारे टूट के ना गिर पड़े आँगन में, ये डर था।
कि जाते फ़िर कहाँ वो रौशनी से भागने वाले?
ज़मीं के इक किसी कोने पे बन शायर के बैठा था।
Sunday, October 18, 2009
आज एक और शेर
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ना पूछो मेरा आसमां पे क्यूँ घर बना न था?
सितारे टूट के ना गिर पड़े आँगन में, ये डर था।
कि जाते फ़िर कहाँ वो रौशनी से भागने वाले?
ज़मीं के इक किसी कोने पे बन शायर के बैठा था।
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