तुम प्राण हृदय, तुम सब कुछ हो
तुम नारायण तुम भोले हो
तुम माँ दुर्गा तुम कण कण हो
पर कहाँ चले जाते हो तुम
जब सबसे अशक्त होते हम हैं
जब मृत्यु निकट होती अपनों की,
तुम विचरण को क्यूँ जाते हो?
गला गला कर व्रत रक्खा है
तुमको पूजा सहज भाव से,
तब छोड़ा जब अधर में हम हों
फिर ईश्वर क्या कहलाते हो?
दूर कहीं क्यों जाते हो?
जिज्जी तुम बहुत याद आती हो बेटा