Friday, February 05, 2016

एक बार फिर मेरा उत्तर

डॉ कुमार विश्वास ने लिखा: 
"उसी की तरह मुझे सारा ज़माना चाहे ,
वो मेरा होने से ज़्यादा मुझे पाना चाहे !
मेरी पलकों से फिसल जाता है चेहरा उसका ,
ये मुसाफ़िर तो कोई और ठिकाना चाहे !
एक बनफूल था इस शहर में वो भी न रहा ,
कोई अब किस के लिए लौट के आना चाहे !
हम अपने जिस्म से कुछ इस तरह हुए रुखसत ,
साँस को छोड़ दिया जिस तरफ़ जाना चाहे...!"


 तो मेरा जवाब भी सुनो:
सांस है केवल क़रीबी जानें,
जिस्म तो दूर से कहता है की हम ज़िंदा हैं।
भटके हैं तो अपनी मर्ज़ी से,
तेरे दिल के ही बाशिंदा हैं॥


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