आवारा सी ज़िन्दगी, इस यायावर को नसीब है
दोस्त बहुत दूर हैं, दोस्ती क़रीब है |
कभी यहाँ कभी वहां भटकी सी लगती है,
मिली भी इक सही, पर ज़िन्दगी अजीब है |
न अपने संग हैं, न पराये दूर कहीं,
बस्ती बहुत दूर है, लगती सजीव है |
हर वक़्त पैमाइश है मेरे नज़रिये की,
लंगड़ों की दौड़ है, अंधे वज़ीर हैं |
Thursday, September 25, 2025
एक और सुनो
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