सब रोते हैं तुम्हारे जाने के बाद
छुप छुप कर, मैं भी
फूट ना पड़ें, इसलिए बात नहीं करते
पापा भी रोते थे, छुप छुप कर
कभी सामने नहीं
अब पापा भी नहीं हैं
मिली होगी ना?
क्या कहते हो एक दुसरे से?
गुस्सा करती हो? अभी भी?
मुझ पर क्यों नहीं किया?
मतलबी क्यों नहीं थी तुम?
मेरी तरह, छुप छुप कर?
Thursday, September 19, 2024
चिट्ठी जिज्जी को
Posted by Ashish at 8:21 PM 0 comments
Labels: personal
Sunday, April 30, 2023
Wednesday, April 12, 2023
वही पुरानी कहानी
दो बेटे थे, पिता की दुकान थी, बाजार में अच्छी चलती थी, सभी इर्षा करते
थे| बेटों की शादियां हुईं, उनके बच्चे भी बड़े होने लगे| बहुएँ बाकी
दुकानदारो के परिवार के साथ उठने बैठने लगीं| पिता की तबियत ख़राब रहने लगी|
कभी बच्चों की पढ़ाई कभी तबियत की वजह से बेटे दुकान में ना बैठ पाते थे|
आपस में झिकझिक होने लगी| घूमने के लिए रक्खा पैसा घर के कामों के लिए लगने
लगा| बहुएँ कुछ अपने को छोटा महसूस करने लगीं, पार्टियों से दूरी रहने लग
गयीं. बाकी दुकानदारों के परिवार का घर में आना जाना बढ़ गया| कुछ केवल छोटी
बहु से मिलतीं तो कुछ बड़ी बहु से| चाय नाश्ता भी अलग बनने लगा| अब रात का
खाना भी लोग अलग अलग समय करने लगे, अक्सर अपने कमरे में ही| सोशल प्रेशर
की वजह से दुकान अलग अलग कर दिया| भाई भाई अलग हो गए| दोनों परिवार अब अपने
पिता से अमीर थे पर उनकी बाज़ार में साख चली गयी|
Motto of the story is - अपनी छोटी परेशानियों में अगर बाहर वाले इन्वॉल्व होंगे तो केवल घर ही टूटेगा|
Posted by Ashish at 10:37 AM 0 comments
Labels: hindi, kahani, literature, story, हिंदी
Friday, April 07, 2023
Saturday, April 01, 2023
Friday, March 31, 2023
बस ऐसे ही
पुरानी दोस्ती की एक नई फोटो अक्सर
नई फोटो में कुछ पुराने लोग
नए संग में कुछ पुरानी यादें
पुरानी यादों से निकले कुछ नए ख्वाब
ख्वाबों की ताबीर को कुछ नए कदम
नए कदम, पर वही पुरानी सड़क
पुरानी सड़क में कुछ नए मील के पत्थर
Friday, February 24, 2023
बस ऐसे ही
बरसाती पानी से हैं कुछ, फूली फूली दीवारेँ
खिड़की कम हैं परदे ज्यादा, बिछी हुई हैं अख़बारें
पथरीली आँखों के पीछे छिपे हुए हैं सपनो सी,
शब्दकोष में बिछड़ गए हैं उम्मीदों की बौछारें |
कहना जो है मालूम सबको, जो बैठे जो सुनते हैं
वो ना पूछें, जो सोचा है, खिंची आँखों की तलवारें
ये घर है, है वही पुराना, समय है केवल बदला सा,
अपने अपने व्यूह में फँस कर अभिमन्यु है थक हारे|
Posted by Ashish at 10:59 PM 0 comments